Monday, March 20, 2017

मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।

लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।

छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।

मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।

बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,
आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!
🌷🌷🌷
तुझ से मिलने का सिलसिला रखता हूँ।
मैं जख़्म खाने का.....हौसला रखता हूँ।।

वो दोस्त तो है मगर......सियासी भी है।
इसलिये मैं उससे ....फासला रखता हूँ।।

हुई मुद्दत .....कोई नही आया अब तक।
मैं अब भी दरवाज़ा......खुला रखता हूँ।।

फूल आखिर फूल हैं ......मुरझायेगे ही।
साथ मैं....काँटों का काफिला रखता हूँ।।

ये आदत 'सागर' अब...नही जाने वाली।
हर शाम दिया उम्मीद का जला रखता हूँ।।

Saturday, March 11, 2017

अपनाने के लिए हजार
  खूबियां भी कम है
 और छोड़ने के लिए
एक कमी ही काफी है
डूबी हैं मेरी उँगलियाँ खुद अपने लहू में, 
ये काँच के टुकड़ों को उठाने के सज़ा है...!