Thursday, November 23, 2023

माँ भोर में उठती है

माँ भोर में उठती है
कि माँ के उठने से भोर होती है
ये हम कभी नहीं जान पाये

बरामदे के घोसले में
बच्चों संग चहचहाती गौरैया
माँ को जगाती होगी
या कि माँ की जगने की आहट से
शायद भोर का संकेत देती हो गौरैया

हम लगातार सोते हैं
माँ के हिस्से की आधी नींद
माँ लगातार जागती है
हमारे हिस्से की आधी रात

हमारे उठने से पहले
बर्तन धुल गये होते हैं
आँगन बुहारा जा चुका होता है
गाय चारा खा रही होती है
गौरैया के बच्चे चोंच खोले चिल्ला रहे होते हैं
और माँ चूल्हा फूंक रही होती है

जब हम खोलते हैं अपनी पलकें
माँ का चेहरा हमारे सामने होता है
कि माँ सुबह का सूरज होती है
चोंच में दाना लिए गौरैया होती है ।

माँ गौरैया होती है / गौरव पाण्डेय ❤️

आज हम गांधी जी को भूल चुके हैं। आखिरी आदमी के

आज हम गांधी जी को भूल चुके हैं। आखिरी आदमी के प्रति ध्यान देने के उनके इशारे को हमने हवा में उड़ा दिया है। इसलिए ऐसे लोग समाज में बहुसंख्यक हैं। गरीब किसान कर्ज का बोझ सह न पाने के कारण आत्महत्या करते हैं। विकास के नाम पर किसानों को विस्थापित किया जाता है। स्त्रियों पर होने वाले बलात्कार और अन्य प्रकार के अत्याचारों की प्रचुरता है। दलितों पर हीनतम अत्याचार होते रहते हैं। राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती जा रही है, और हमारी संसदीय संरचना इसके प्रति चुप्पी साधे है। धन केंद्रित एक कृत्रिम संस्कृति शीर्ष पर है। गरीबों की स्थिति शोचनीय है।

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा

#WorldEnvironmentDay
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
~कैफ़ी आज़मी

Tuesday, November 21, 2023

इतके सभ्य भी मत होना

मेरे बेटे
कभी इतने ऊंचे मत होना
कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे
तो उसे लगानी पड़े सीढियां,

न कभी इतने बुद्धिजीवी
कि मेहनतकशों के रंग से
अलग हो जाए तुम्हारा रंग,

इतने इज़्ज़तदार भी न होना
कि मुँह के बल गिरो
तो आंखें चुराकर उठो,

न इतने तमीज़दार ही
कि बड़े लोगों की
नाफ़रमानी न कर सको कभी,

इतने सभ्य भी मत होना
कि छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा
तुम्हें अश्लील लगने लगे
और कंकड़ मारकर उड़ा दो उन्हे
बच्चों के सामने से,

न इतने सुथरे ही
कि मेहनतकशी से कमाये गए कॉलर का मैल
छुपाते फिरो महफ़िल में,

इतने धार्मिक मत होना
कि ईश्वर को बचाने के लिए
इंसान पर उठ जाय तुम्हारा हाथ

न कभी इतने देशभक्त
कि घायल को उठाने को
झंडा जमीन पर न रख सको

कभी इतने स्थाई मत होना
कि कोई लड़खड़ाये तो
अनजाने ही फूट पड़े हंसी

और न कभी इतने भरे पूरे
कि किसी का प्रेम में बिलखना
और भूख से मर जाना लगने लगे गल्प।

पंक्तियाँ : कविता कादम्बरी

Sunday, November 19, 2023

मुझे लगासरकार मेरा साथ देगी

मुझे लगा
सरकार मेरा साथ देगी
फॉर्म भरने के पैसे जुटाए
तो सेंटर इतना दूर धकेला
की पहुँचते-पहुँचते
ओवर-एज हो गया

ईश्वर तक पहुँचने के सारे साधन
जब मेरे बजट से बाहर हैं
सरकार कह रही है
मंदिर बन रहा है
ये तक नहीं कह सकता
अस्पताल बनवा दो
सत्ताईस की उम्र में मैं बूढ़ा हो रहा हूँ

फिर मुझे लगा
समाज मेरा साथ देगा
भागा-भागा गया उसके पास
एक अकेले व्यक्ति की तरह।

वर्षों की वार्तालाप के बाद
समाज ने मुझे लौटाया समाज को
एक भीड़ बनाकर

अंततः घर आया
लगा कोई साथ दे न दे
परिवार साथ देगा
दरवाज़ा खटखटाया
नहीं आई कोई आवाज़
सब सो गए
भाई, माँ, और पिताजी।

बाईस’ तक
वे मुझे जानते थे
‘सत्ताईस’ तक उन्हें एहसास था
मेरे ‘कौन’ होने का
मैं ‘तैंतीस’ पार कर चुका हूँ
अब वे मुझे नहीं जानते।

घर की चौखट पर
बैठे-बैठे मैं सोच रहा हूँ
मैं कौन हूँ?

इन तीन ‘संस्थाओं’ ने
मुझे कैसा प्रश्न दे दिया है।

हमारे समाज में ऐसे लड़के भी हैं

हमारे समाज में ऐसे लड़के भी हैं
जो अपनी बहनों के बोलने पे
तो बंदिश लगाकर रखते हैं,
मगर अपनी प्रेमिका से कहते हैं
कि वो अपने परिवार से बग़ावत करे।

गलती नीम की नहीं है

गलती नीम की नहीं है
कि वो कड़वा है
खुदगर्ज़ी जीभ की है
कि उसको मीठा पसंद है

प्रेम और शादी की सफलता

मैंने नहीं देखा है कभी पापा को
माँ के लिए गिफ्ट खरीदते देते हुए

और न ही
गुलाब के फूल को
माँ के बालों में सहेजते हुए

लेकिन मैंने देखा है पापा को
किचन में रोटियाँ बनाते हुए
और माँ की परवाह करते हुए

और मैंने जाना है
प्रेम की पूर्णता जताने से नहीं
बल्कि एक-दूसरे के लिए जीने से होती है

पंक्तियाँ : पिंकी गुगुप्त

मैंने जाना है

मैंने नहीं देखा है कभी पापा को
माँ के लिए गिफ्ट खरीदते देते हुए

और न ही
गुलाब के फूल को
माँ के बालों में सहेजते हुए

लेकिन मैंने देखा है पापा को
किचन में रोटियाँ बनाते हुए
और माँ की परवाह करते हुए

और मैंने जाना है
प्रेम की पूर्णता जताने से नहीं
बल्कि एक-दूसरे के लिए जीने से होती है

पंक्तियाँ : पिंकी गुप्ता

Saturday, November 18, 2023

तुम्हारा मिलना

तुम्हारा मिलना
जैसे किसी बच्चे को
उसका मनपसन्द खिलौना मिल जाना

जैसे बारिश के बाद
मिट्टी की सौंधी खुशबू

जैसे शरद पूर्णिमा के
अमृतमयी चांद का दिख जाना

जैसे किसी नवविवाहिता के
मांग पर सुर्ख सिंदूर

जैसे किसी किशोरी को
उसके प्रेमी का पहला स्पर्श
महसूस होना

जैसे अमावस की रात
लाखो दियों का जगमगाना

जैसे माँ ने खुश होकर
बारम्बार चूम लिया हो माथे को

जैसे रेगिस्तान के मुसाफिर को
दिख गया हो जलस्त्रोत

जैसे श्रीकृष्ण का मुरली
के तानों की छेड़ देना

जैसे किसी बेजान जिस्म में
नई सांसो का प्रवाह होना

तुम्हारा मिलना
जैसे मेरे अस्तित्व का मिल जाना|

कुछ लोग इतना बच-बचकर जीते हैं

कुछ लोग इतना बच-बचकर जीते हैं
कि जिंदगी उन्हें छू भी नहीं पाती।

उनके पास असफल प्रेम की कोई कहानी नहीं होती
किसी के छूट जाने का मलाल नहीं होता।

हर दम कचोटने वाली कोई ख्वाहिश नहीं होती,
किसी से इतना गुस्सा भी नहीं कि
ऊपरवाले से एक कत्ल की इजाज़त मांग सकें।

किसी से इतना मोह भी नहीं कि
उसकी तकलीफ में अकेले में खूब रो लें।

इनके पास न कोई पागलपन का किस्सा होता है
न ही बदन और दिल पर किसी चोट का निशान।

बर्फ की तरह ठंडे लोग
बर्फ जैसे ही बिना आवाज़ किए चुपचाप पिघल जाते हैं।

बचते-बचाते जीते हुए एक दिन
ज़िंदगी के अहसास से ही बचकर मर जाते हैं।


उदास लड़कों को खोजने के लिए

उदास लड़कों को खोजने के लिए
कोई मोहनजोदाड़ो जैसी खुदाई नहीं करनी पड़ती

दिख जाएंगे कहीं भी, कभी भी
उदास न दिखने की कोशिश करते हुए
मेट्रो या ऑटो की सवारी करते हुए
कभी देखते हुए आसमान को देर रात छत से
कभी गाँव को याद करते हुए
कभी पढ़ते-पढ़ते किसी पन्ने को मोड़कर
सोचते हुए कि स्याला ये तो अपनी कहानी है

कभी समझाते हुए दोस्त को
कि एक समय बाद
सब पटरी पर आ जाएगा
कभी लगाते हुए हिसाब
बहन की शादी के खर्च का

और भी बहुत जगह
दिख जाएंगे तुम्हें उदास लड़के
हँसते हुए, सिगरेट पीते हुए
उदासी छुपाने की कोशिश करते हुए
उदास लड़के।

आजकल शहर की सड़कों पर माँगने का धन्धा चल रहा

आजकल शहर की सड़कों पर माँगने का धन्धा चल रहा है, आपने दिया तो ठीक वरना,भला बुरा सुनिए बेज्जत होइए ; कुछ लोग तो प्यार भी इसी तर्ज पर कर रहे हैं, आपने उनका औचक, मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव स्वीकारा तो ठीक, वरना वो आप पर ताने कसेंगें लोगों के बीच आपको गिराना शुरू करेंगे

एक लड़की है जो

एक लड़की है जो
किसी से नहीं कहती अपनी बातें
जब मुश्किल में होती है तो रोक लेती है अपने आँसू
जब आता है उसके सामने एक लड़का तो
निकल आते हैं लड़की की आंख से आँसू
वो रोती है बिना कुछ बताए और
लड़का उसे सहलाता है बिना कुछ पूछें।

वो लड़का भी किसी से नहीं कहता अपनी बातें
जब मुश्किल में होता है तो दिखाता है साहस
जब आती है उसके सामने एक लड़की तो
नहीं दिखा पाता साहस, निकल पड़ते हैं आँसू
वो रोता है बिना कुछ बताए और
लड़की उसे सहलाती है बिना कुछ पूछें।

हर किसी के सामने नहीं निकलते ये आँसू
न ही रुकते है ये हर किसी के सामने
जिनमें भी दिखेगा थोड़ा सा अपनापन
उसके कंधे पर रखकर अपना सर
बिना कुछ बताए खूब रोएगा ये इंसान
और इस तरह निभायेंगे दो लोग
अपना अपनापन।

ये कितना बुरा है कि

ये कितना बुरा है कि
तुम्हे देखने के बेहिसाब बहाने हैं
छूने का एक भी नही

आज मेरे शहर में बारिश है
मैं भींग रही हूँ
तुम्हारे शहर भी हो तो
तुम भी भींगना

आसमान,
हमारे स्पर्श का साक्षी होगा।

~ राखी सिंह

हम भूल जायेंगे इक रोज़;

हम भूल जायेंगे इक रोज़;
वो सारे बलिदान..
वो वात्सल्य..
जो वो बिना किसी शर्त ,
लुटा रहे हैं
खुले हाथो से
सिर्फ हमारी मुस्कान की खातिर
और हम खुदगर्ज,
शायद कह देंगे इक दिन
की आपने तो बस फ़र्ज़ निभाया
हम बस कृतघ्न बने,
दबे रहेंगे ताउम्र पितृऋृण तले..!

कित्ता और कुतिया

क्या लगता है मैं रुकूँगा
नही , असंभव।
क्या लगता है मैं झुकूँगा
नही , असंभव।।

कष्टों को खूँटी पर रखकर
सूर्य से नज़र मिलायेंगे ।
असि मनोबल की लेकर
रण-भूमि में भिड़ जाएंगे ।।

हम खुद से नौका बनाएंगे
और खुद ही पार लगाएंगे ।
अब उनसें क्या ही आस रखे
जो बाते सिर्फ बनाएंगे ।।

संघर्षो की आँधी में हम
अपना दीप जलाएंगे ।
तूफानों की क्या मजाल
जो जलते दीप बुझायेंगे ।।

रोकेंगी मुझकों आँधी क्या
मैं पर्वत बन टकराऊँगा।
बरसेगा मुझपर अम्बर क्या
मैं उसकों आँख दिखाऊँगा ।।

विघ्नों से नही डरने वाला
न हाथ खड़े करने वाला ।
पुरुषार्थ ही मेरा ईश्वर है
मैं स्वयं भाग्य लिखने वाला ।।

संघर्ष पथ बढ़ते चलूँगा
कर्म नीत करते चलूँगा।
हार मानूँगा नही
अहसान माँगूँगा नही ।।

पंक्तियां : चिंतन जैन

संघर्षो की ऑधी में हम

क्या लगता है मैं रुकूँगा
नही , असंभव।
क्या लगता है मैं झुकूँगा
नही , असंभव।।

कष्टों को खूँटी पर रखकर
सूर्य से नज़र मिलायेंगे ।
असि मनोबल की लेकर
रण-भूमि में भिड़ जाएंगे ।।

हम खुद से नौका बनाएंगे
और खुद ही पार लगाएंगे ।
अब उनसें क्या ही आस रखे
जो बाते सिर्फ बनाएंगे ।।

संघर्षो की आँधी में हम
अपना दीप जलाएंगे ।
तूफानों की क्या मजाल
जो जलते दीप बुझायेंगे ।।

रोकेंगी मुझकों आँधी क्या
मैं पर्वत बन टकराऊँगा।
बरसेगा मुझपर अम्बर क्या
मैं उसकों आँख दिखाऊँगा ।।

विघ्नों से नही डरने वाला
न हाथ खड़े करने वाला ।
पुरुषार्थ ही मेरा ईश्वर है
मैं स्वयं भाग्य लिखने वाला ।।

संघर्ष पथ बढ़ते चलूँगा
कर्म नीत करते चलूँगा।
हार मानूँगा नही
अहसान माँगूँगा नही ।।

पंक्तियां : चिंतन जैन

लड़कियाँ बख़ूबी जानती हैं


लड़कियाँ बख़ूबी जानती हैं किस पौधे को कितना पानी देना है। फिर भी सिर्फ़ दो मौक़े ऐसे होते हैं जब लड़कियाँ जाने-अनजाने में हद से ज्यादा पानी दे देती हैं। पहला, जब उन्हें लगे कि किसी पेड़ को सच में पानी की जरूरत है। दूसरा, जब किसी पौधे का फूल उन्हें पसंद आ जाए ।

पेड़ की प्यास में और पसंदीदा फूल के लगाव में लड़कियाँ भूल जाती हैं कि कहां पानी रोकना चाहिए था। वो भूल जाती हैं कि ज्यादा पानी देना भी खतरनाक हो सकता है। कुछ दिन अच्छे से खिलने के बाद पौधे धीरे-धीरे मुरझाने लगता हैं, लड़कियों की लाख कोशिशों के बाद भी जब पौधा सही नहीं होता तो लड़कियां इसका सारा इल्जाम अपने सर ले लेती हैं।

पौधों के सूखने पर लड़कियों को समझ आता है कि प्यासे को ज्यादा पानी पिलाने पर उसकी प्यास बढ़ भी सकती है और ज्यादा लगाव भी अलगाव का कारण बन सकता है। एक प्यासे की प्यास से और खूबसूरती के लगाव से लड़कियाँ बख़ूबी जान जाती हैं कि किस पौधे को कितना पानी देना है।