मेरे बेटे
कभी इतने ऊंचे मत होना
कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे
तो उसे लगानी पड़े सीढियां,
न कभी इतने बुद्धिजीवी
कि मेहनतकशों के रंग से
अलग हो जाए तुम्हारा रंग,
इतने इज़्ज़तदार भी न होना
कि मुँह के बल गिरो
तो आंखें चुराकर उठो,
न इतने तमीज़दार ही
कि बड़े लोगों की
नाफ़रमानी न कर सको कभी,
इतने सभ्य भी मत होना
कि छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा
तुम्हें अश्लील लगने लगे
और कंकड़ मारकर उड़ा दो उन्हे
बच्चों के सामने से,
न इतने सुथरे ही
कि मेहनतकशी से कमाये गए कॉलर का मैल
छुपाते फिरो महफ़िल में,
इतने धार्मिक मत होना
कि ईश्वर को बचाने के लिए
इंसान पर उठ जाय तुम्हारा हाथ
न कभी इतने देशभक्त
कि घायल को उठाने को
झंडा जमीन पर न रख सको
कभी इतने स्थाई मत होना
कि कोई लड़खड़ाये तो
अनजाने ही फूट पड़े हंसी
और न कभी इतने भरे पूरे
कि किसी का प्रेम में बिलखना
और भूख से मर जाना लगने लगे गल्प।
पंक्तियाँ : कविता कादम्बरी